Monday, June 25, 2012

बंगलाक लिपि मैथिलीक लिपिक दुहिता लिपि मानल जाइत अछि

बंगलाक लिपि मैथिलीक लिपिक दुहिता लिपि मानल जाइत अछि - यद्यपि उत्तर बंगलाक मालदा दिनाजपुरर्क किछु पाकिट मिथिलाक अछि मुदा बंगालिक सर्वदा समर्थन चलते हमसब ओकर मांग नहि करैत छि- १९५४-५५ मे माल्दामे अखिल भारतीय मैथिल महासभा भेल छल जाहिमे महाराजा दरभंगा गेल छलाह- जाकर संस्मरण मायानंद मिश्राजी लिखने छथि भारती-मंडन पत्रिकामे. ई धारणा प्रचलित मुदा गलत अछि- मागधी नहि मिथिला प्राकृतस उद्भूत मैथिलीके हम कहैत रह्लंहू आ बादमे देखल महामहोपाध्याय उमेश मिश्र सेहो विदेह प्राकृतस कहने छथि. हमर सोच अछि जे जखन मागधी प्राकृतस मगही मगध साम्राज्यक अछैत बोलीस भाषा नहि भय पायल तखन मैथिलीके कियैक ओहिस उद्भूत मानी- मगहीके बहुत लोक मैथिलीक बोली मानैत छथिन्ह. संस्कृतस कोनो भाषाके बनक सिद्धांतक सेहो हम विरोधी छी वल्कि सब बोलीस संस्कृत प्रांजल रूप निकालि स्थापित कयल गेल जे कश्मीरस कन्याकुमारी तक एकरूपें रहल अछि - ई बात अलग जे बादमे सेहो एक दोसर पर प्रभाव पडैत रहलैक - यथा संस्कृतक मैथिली पर आ मैथिलीक संस्कृत पर कुमार संभवक एक अष्टम सर्गक श्लोक अछि जाहिमे विवाहक बाद पार्वतीक स्तुति जनभाषामे करक कहल गेल अछि आ शिवक स्तुति संस्कृतमे ई इहो बात खंडित करैत अछि जे शिव अनार्यक देवता.. आर्य कतहु बाहरस अयले नहि छथि..

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